Monday, 12 December 2011

दुनिया इक चिड़िया


दुनिया इक चिड़िया घर  है |
सबको  फँसने  का  डर  है ||

बारिश  में  भीगे   है  सर |
नीली   छतरी  सर पर है ||

अफ़सर बन कर भूला वो |
माँ  का  टूटा  सा   घर  है ||

ट्यूशन  पढ के  बच्चे  का |
फिर  क्यूँ  ज़ीरो  नंबर  है ?

मुश्किल  में  सारे  हुक्काम |
इक  बूढ़ा  अनशन   पर  है ||

इस बिगड़ी हुई हालत   की |
ज़िम्मेदारी    सब   पर   है ||

रहता    है    जो     पोशीदा |
वो    कैसा   ताक़तवर   है ?

झगड़ा    दो   परिवारों  का |
बस  खिड़की   के  ऊपर है ||

मेअद:  क्यूँ  होगा  गड़बड़ ?
जब   आटे   में   चोकर  है ||

क़र्ज़े     में    है    सर   डूबा  |
फिर  भी  ये   आडम्बर   है ||

पनघट गुम पनिहारिन गुम |
ख़ाली    ख़ाली    गागर    है ||

डा०  सुरेन्द्र  सैनी 

मुझसे रूखी बात


मुझसे     रूखी    बात    न   कर |
ज़ुल्मों   की   बरसात   न   कर ||

बद्कारों   का    साथ    न   कर |
ओछी   अपनी   ज़ात   न  कर ||

दिन  को  दिन  कह रात न कर |
झगड़ा    यूँ     बेबात   न    कर ||

ख़ुद्दारी     कुछ    सीख     मियाँ |
सबके    आगे    हाथ    न   कर ||

उसकी   भी   सुन    बात   कोई |
अपनी - अपनी   बात   न  कर ||

संसद   के   अन्दर    तू   कभी |
 धक्का  – मुक्की लात न कर ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

  

Thursday, 1 December 2011

ग़म का बोझ


ग़म  का  बोझ उठा कर रख |
मन का बाग सजा कर रख ||

घर  में  दीप  जला कर रख |
दिल में प्यार बसा कर रख ||

बीमारी   है    अगर   कोई |
सब के बीच बता कर रख || 

कल की फ़िक्र नहीं तुझको |
कुछ तो यार बचा कर रख || 

कान्धा   चार   जाने   दे  दें |
इतना  नाम कमा कर रख || 

ये   सरकार     नहीं   जागी |
सच का शोर मचा कर रख || 

सुन  कर  लोग  हँसेंगे  सब |
दिल का दर्द छुपा कर रख ||

जब तक पेश चले तब तक |
सब  से बात बना कर रख || 

डा०  सुरेन्द्र  सैनी