हम पे महंगाई बंदूक़ ताने हुए |
कौन से पाप हमसे न जाने हुए ||
हम से उजरत का मांगे हिसाब आजकल |
बच्चे अब तो हमारे सयाने हुए ||
घोर कंक्रीट के जंगलों में सभी |
आसमां तक उठे आशियाने हुए ||
सारी दुनिया में हैं बस हमीं आम से |
लोग हैं एक से एक माने हुए ||
आज तनख़्वाह बेशक ज़ियादा सही |
चार दाने तो मुश्किल जुटाने हुए ||
एक का नोट भी अब चला जाएगा |
बंद चार आने क्या आठ आने हुए ||
अब ग़ज़ल में नई बात मैं क्या कहूं ?
सारे मफ़हूम तो अब पुराने हुए ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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