Wednesday, 30 November 2011

टीस जब दिल में


टीस  जब दिल  में उठे कोई ग़ज़ल  कह लेना |
आग  सीने  में  लगे  कोई   ग़ज़ल  कह  लेना ||

प्यार  बांटों  सदा  नफ़रत से क्या मिला भाई |
घर किसी का जो बसे  कोई  ग़ज़ल कह लेना ||

देख कर जिसकी आँखों में सुकूँ   मिलता  हो |
एसा  रस्ते  में मिले कोई ग़ज़ल   कह  लेना || 

तीरगी को मिटाने जब खुला  परचम लेकर |
हौसलामंद  चले  कोई   ग़ज़ल   कह  लेना || 

ज़िंदगी में किसी की आँख को रोशन करिये |
जब दुआ उसकी फले कोई ग़ज़ल कह लेना || 

लाख गुलचीं हो मगर अपनी हरी डाली पर |
फूल इतरा के खिले कोई ग़ज़ल कह लेना || 

डा० सुरेन्द्र  सैनी 

Sunday, 27 November 2011

हम पे महंगाई


हम    पे    महंगाई    बंदूक़    ताने    हुए |
कौन   से   पाप   हमसे    न   जाने   हुए ||

हम से उजरत का मांगे हिसाब आजकल |
बच्चे    अब    तो    हमारे   सयाने   हुए ||

घोर   कंक्रीट   के    जंगलों     में   सभी |
आसमां   तक   उठे     आशियाने   हुए ||

सारी  दुनिया  में  हैं बस  हमीं आम  से |
लोग   हैं   एक   से    एक   माने     हुए ||

आज  तनख़्वाह   बेशक  ज़ियादा  सही |
चार   दाने   तो   मुश्किल    जुटाने  हुए ||

एक  का  नोट   भी  अब  चला  जाएगा |
बंद  चार    आने  क्या  आठ  आने  हुए ||

अब  ग़ज़ल  में  नई  बात  मैं क्या कहूं ?
सारे   मफ़हूम   तो   अब    पुराने  हुए ||

डा० सुरेन्द्र  सैनी