जितनी लगती है अच्छी सियासत |
उतनी है ये बुरी भी सियासत ||
यूँ सभी को न भाती सियासत |
हर किसी को न आती सियासत ||
बाप दादाओं में थी सियासत |
उसके है खू़न में भी सियासत ||
इक ज़माना था जब सियासत |
मर गयी आज कल की सियासत ||
अर्श पे जिसको ले जाये इक दिन |
फर्श पे भी गिराती सियासत ||
जब सुलह की चले बात कोई |
आग में डाल दे घी सियासत ||
इक दफ़ा स्वाद इसका चखे जो |
वो न छोड़े कभी भी सियासत ||
कल तलक थी न कोई लियाक़त |
आई तहज़ीब जब की सियासत ||
क्या करे तज़किरा इस पे कोई |
आज है लंगड़ी लूली सियासत ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
बिन बुलाये या बुलाये जब चली आती है मौत |
कुछ न कुछ आँसूं सभी की आँख में देती है मौत ||
क्यूँ पचा पाए नहीं हम ये हक़ीक़त आज तक |
जब हुए पैदा तो इक दिन लाज़िमी होती है मौत ||
जब किसी बीमार की बीमारी होती लाइलाज |
तब सभी तीमारदारों को थका जाती है मौत ||
रोज़ ही दुनिया में कुछ मरते हैं वो इंसान भी |
दो ही गज़ धरती की ख़ातिर जिनको तरसाती है मौत ||
जान देने पर तुले लोगों ज़रा यह जान लो |
ज़िन्दगी की अहमियत का राज़ बतलाती है मौत ||
उम्र भर जो ले न पाए उस ख़ुदा का नाम तक |
आख़िरी दम में ख़ुदा को याद करवाती है मौत ||
आपसी तकरार में जो बढ़ गए हों फ़ासले |
दूरियों को मुख़्तसर ही पर मिटा देती है मौत ||
डा० सुरेन्द्र सैनी
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