चोट गहरी दिल पे जब सहता हूँ मैं |
तब कहीँ जा कर ग़ज़ल कहता हूँ मैं ||
इक नदी सा रोज़ खोता हूँ वुजूद |
जब समुंदर की तरफ़ बहता हूँ मैं ||
खुश ख़यालों के सफ़र में रात दिन |
तेरे पीछे भागता रहता हूँ मैं ||
तू नहीं मिलता तो बस थक हार कर |
फिर किसी मीनार सा ढहता हूँ मैं ||
दूसरों को दूँ खुशी मैं किस तरह |
हर घड़ी ये सोचता रहता हूँ मैं ||
डा ० सुरेन्द्र सैनी
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