Monday, 6 February 2012

चोट गहरी दिल


चोट गहरी दिल पे जब  सहता  हूँ  मैं |
तब कहीँ जा कर ग़ज़ल कहता हूँ मैं ||

इक  नदी   सा रोज़  खोता हूँ  वुजूद |
जब  समुंदर की तरफ़ बहता  हूँ  मैं ||

खुश  ख़यालों के सफ़र में रात  दिन |
तेरे     पीछे    भागता   रहता  हूँ  मैं ||

तू नहीं मिलता तो बस थक हार कर |
फिर  किसी  मीनार सा ढहता हूँ   मैं ||

दूसरों  को  दूँ  खुशी मैं  किस   तरह |
हर  घड़ी  ये  सोचता   रहता  हूँ   मैं ||   

डा ०  सुरेन्द्र  सैनी 

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